एक राष्ट्र-एक चुनाव की ओर मोदी सरकार का एक और कदम
खरी खरी डेस्क
नई दिल्ली, 1 सितंबर। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार ने एक राष्ट्र-एक चुनाव की अवधारणा को अमली जामा पहनाने के लिए एक कदम और आगे बढ़ाया है। इस तरह के चुनाव की संभावनाएं तलाशने के लिए केंद्र ने देश के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविद की अध्यक्षता में एक समिति के गठन का फैसला लिया है। यह फैसला ऐसे समय पर हुआ है कि जब सरकार सितंबर के मध्य में पांच दिन के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाने का फैसला लिया है। संसद का सत्र बुलाने के फैसले के अगले ही एक राष्ट्र एक चुनाव के लिए कमेटीबनाने के फैसले से देश का सियासी माहौल गर्मा गया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते कुछ सालों में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने के विचार को दृढ़ता से आगे बढ़ाया है। मोदी और अमित शाह की बीजेपी के एजेंडे में यह मुद्दा शामिल है। इसलिए इस पर अक्सर कोई न कोई सुगबुगाहट होती रहती है। इस साल के अंत में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं और उसके बाद अगले साल मई में लोकसभा चुनाव प्रस्तावित हैं। देश में चुनावी माहौल बन रहा है। ऐसे में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविद की अध्यक्षता में समिति का गठन औऱ संसद का विशेष सत्र बुलाया जाना तमाम अटकलों का बाजार गर्म करता है। यह घटनाक्रम सरकार द्वारा 18 से 22 सितंबर के बीच संसद का विशेष सत्र बुलाए जाने के एक दिन बाद आया है, जिसका एजेंडा गुप्त रखा गया है। इस बीच भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा शुक्रवार सुबह पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिलने उनके आवास पर पहुंचे। वहां कुछ देर रुकने और पूर्व राष्ट्रपति से संक्षिप्त विचार-विमर्श के बाद वह वापस लौटे। संसद का विशेष सत्र बुलाने के तुरंत बाद ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ की संभावना तलाशने के लिए समिति गठित करने के फैसले को लेकर अटकलें लगने लगी हैं। सरकार ने हालांकि संसद के विशेष सत्र का एजेंडा घोषित नहीं किया है। सरकार के इस कदम से आम चुनाव एवं कुछ राज्यों के चुनाव को आगे बढ़ाने की संभावनाएं भी खुली हैं, जो लोकसभा चुनावों के बाद में या साथ होने हैं। ‘एक-राष्ट्र, एक-चुनाव’ के लिए संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता होगी और फिर इसे राज्य विधानसभाओं में ले जाने की आवश्यकता होगी। यह कोई नई अवधारणा नहीं है। भारत में 1967 तक एक साथ चुनाव कराना आम बात थी और पूर्व में इस तरह से 4 चुनाव हुए भी हैं। कुछ राज्य विधानसभाओं को 1968-69 में समय से पहले भंग कर दिए जाने के बाद यह प्रथा बंद हो गई। लोकसभा भी पहली बार 1970 में निर्धारित समय से एक साल पहले भंग कर दी गई थी और 1971 में मध्यावधि चुनाव हुए थे। भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई मौकों पर इस मुद्दे पर बात की है और यह 2014 के लोकसभा चुनावों के लिए पार्टी के घोषणापत्र का भी हिस्सा था। पीएम मोदी ने 2016 में एक साथ चुनाव कराने की बात कही थी और 2019 में लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद उन्होंने इस मुद्दे पर चर्चा के लिए सर्वदलीय बैठक बुलाई थी। तब बैठक में कई विपक्षी दलों ने भाग नहीं लिया था। ‘एक-राष्ट्र, एक-चुनाव’ के पक्ष में प्रधानमंत्री मोदी ने तर्क देते रहे हैं कि हर कुछ महीनों में चुनाव कराने से देश के संसाधनों पर बोझ पड़ता है और शासन में रुकावट आती है।